जीने की इच्छा बुझ गयी तुममे, मौत से इतनी मुहब्बत कहाँ सही था? जीने की इच्छा बुझ गयी तुममे, मौत से इतनी मुहब्बत कहाँ सही था?
विश्वास से रिश्ते अटूट रहते हैं विश्वास से रिश्ते अटूट रहते हैं
मृत्यु से क्यूँ डरूँ, मृत्यु मेरी है अर्धांगिनी। मृत्यु से क्यूँ डरूँ, मृत्यु मेरी है अर्धांगिनी।
प्यार का क्या है! प्यार का क्या है!
और तुम... तुम मुझमें रहकर भी मुझसे जुदा हो। और तुम... तुम मुझमें रहकर भी मुझसे जुदा हो।
बन कर फल कभी थोड़े कच्चे तो कभी थोड़े पक्के, लटकते अधटूटी टहनियों से दिखावी रिश्ते। बन कर फल कभी थोड़े कच्चे तो कभी थोड़े पक्के, लटकते अधटूटी टहनियों से दिखा...